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किसान परवल की खेती से कुछ महीनों में ही अच्छी-खासी कमाई कर सकते हैं

किसान परवल की खेती से कुछ महीनों में ही अच्छी-खासी कमाई कर सकते हैं

किसान भाई परवल की खेती से अच्छी खासी आमदनी कर सकते हैं। यह दीर्घकाल तक किसानों को फायदा प्रदान कर सकती है। आलू-परवल की सब्जी अधिकांश लोगों को काफी पसंद होती है। इस वजह से हर प्रकार के कार्यक्रम में यह सब्जी आपको बड़ी आसानी से खाने के लिए मिल जाती है। हमारे भारत में इसकी कितनी लोकप्रियता है, इसके संबंध में शायद ही किसी को नहीं पता हो। यदि किसान अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए खेत में किसी अन्य फसल को उगाने के विषय में सोच रहे हैं, तो परवल उनके लिए काफी अच्छा विकल्प हो सकता है। केवल एक एकड़ में परवल की खेती से अन्नदाता किसान वर्षभर में लाखों की आमदनी कर सकते हैं। इसकी खेती के लिए अधिक लागात नहीं लगानी पड़ती है। अब हम एक एकड़ जमीन में परवल की खेती पर कितना खर्च होता है और कितना लाभ के बारे में।

खेत के एक एकड़ हिस्से में परवल के कितने पौधे लग सकते हैं

परवल की खेती भी बाकी अन्य फसलों की तरह से ही होती है। इसकी खेती के लिए सर्व प्रथम खेतों की जुताई कर ली जाती है। उसके बाद रोटावेटर से खेत को समतल रूप दिया जाता है। जिससे कि आगे चलकर सिंचाई में किसी प्रकार की दिक्कत परेशानी ना हो। इसके उपरांत परवल के पौधे खेत में आठ फीट की दूरी पर रोप जाते हैं। इसी प्रकार एक एकड़ भूमि में तकरीबन 650 परवल के पौधे लगते हैं। साथ ही, रोपण के वक्त गोबर की खाद डालकर भूमि को अधिक उपजाऊ बनाया जाता है। जिससे कि उत्पादन अधिक हो सके। साथ ही, जून से अगस्त व अक्टूबर से नवंबर का माह इसकी रोपाई के लिए अनुकूल माना जाता है। परवल को तैयार होने में अन्य सब्जियों की भांति ही लगभग तीन महीने का वक्त लगता है। इसकी खासियत यह है, कि परवल तैयार होने के उपरांत करीब आठ-नौ माह तक पैदावार देते हैं। ये भी पढ़े: इस राज्य में कृषि उपकरणों पर दिया जा रहा है 50 प्रतिशत तक अनुदान

परवल की खेती से किसान कितना लाभ उठा सकते हैं

पौधे, रोपाई और सिंचाई समेत सभी खर्चों का योग करें तो एक एकड़ में परवल की खेती पर तकरीबन 25 हजार रुपये की लागत आती है। साथ ही, उत्पादन तकरीबन 150-250 क्विंटल तक होता है। यदि बाजार में परवल की थोक कीमत की बात की जाए। तो यह कम से कम 3000 रुपये क्विंटल तक बिकता है। सीधी सी बात है, किसान इसको बेचकर के कुछ ही महीनों में लाखों की कमाई कर सकते हैं। बतादें, कि परवल के अंदर भी बहुत सारे गुण होते हैं। इसे खाने सेहत हमेशा अच्छी रहती है। इसमें विटामिन-बी 1, विटामिन-बी 2 और विटामिन-सी जैसे पोषक तत्व विघमान रहते हैं। जो कि बहुत सारी बीमारियों को शरीर से दूर रखने में अपनी अहम भूमिका निभाती है।
परवल की सबसे बड़ी समस्या फल, लत्तर और जड़ सड़न रोग को कैसे करें प्रबन्धित?

परवल की सबसे बड़ी समस्या फल, लत्तर और जड़ सड़न रोग को कैसे करें प्रबन्धित?

Dr AK Singh
डॉ एसके सिंह
प्रोफ़ेसर सह मुख्य वैज्ञानिक (पौधा रोग) एवं
विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय , पूसा , समस्तीपुर, बिहार
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sksraupusa@gmail.com/sksingh@rpcau.ac.in
विश्व में परवल की खेती भारत के अलावा चीन, रूस, थाईलैंड, पोलैंड, पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, श्रीलंका, मिश्र तथा म्यानमार में होती है। भारत में इसकी खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, मद्रास, महाराष्ट्र, गुजरात, केरल तथा तामिलनाडु राज्यों में परवल की खेती की जाती है। उत्तर प्रदेश में परवल की खेती व्यावसायिक स्तर पर जौनपुर, फैजाबाद, गोण्डा, वाराणसी, गाजीपुर, बलिया तथा देवरिया जनपदों में होती है ,जबकि बिहार में परवल की व्यावसायिक खेती पटना, वैशाली, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, चम्पारण, सीतामढ़ी, बेगूसराय, खगड़िया, मुंगेर तथा भागलपुर में होती है। बिहार में इसकी खेती मैदानी तथा दियारा क्षेत्रों में की जाती है। बरसात में परवल में फल, लत्तर और जड़ सडन रोग कुछ ज्यादा ही देखने को मिलता है ,इसका प्रमुख कारण वातावरण में नमी का ज्यादा होना प्रमुख है। यह रोग देश के प्रमुख परवल उगाने वाले सभी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर होती है। इस रोग की गंभीरता लगभग सभी परवल उत्पादक क्षेत्रो में देखने को मिलता है । यह रोग खेत में खड़ी फसल में तो देखने को मिलता ही है इसके अलावा यह रोग जब फल तोड़ लेते है, उस समय भी देखने को मिलता है। फलों पर गीले गहरे रंग के धब्बे बनते हैं, ये धब्बे बढ़कर फल को सड़ा देते हैं तथा इन सड़े फलों से बदबू आने लगती है, जो फल जमीन से सटे होते है, वे ज्यादा रोगग्रस्त होते हैं। सड़े फल पर रुई जैसा कवक दिखाई पड़ता है।

परवल में जड़ एवं लत्तर सड़न के कारण

फफूंद रोग कारक : परवल में जड़ एवं बेल (लत्तर) सड़न के लिए एक से अधिक रोगकारक जिम्मेदार है। फाइटोफ्थोरा मेलोनिस (Phytophthora melonis) के कारण परवल (Trichosanthes dioica) के फल, लत्तर और जड़ के सड़न की बीमारी होती है इसके अतरिक्त राइजोक्टोनिया सोलानी, फ्यूसेरियम की विभिन्न प्रजातियां और पाइथियम की विभिन्न प्रजातियां भी परवल में जड़ और बेल के सड़ने के पीछे प्रमुख कारण हैं। ये रोगज़नक़ गर्म और आर्द्र परिस्थितियों में अधिक पनपते हैं, जिससे फसल संवेदनशील हो जाती है, खासकर बरसात के मौसम में।

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किसान परवल की खेती से कुछ महीनों में ही अच्छी-खासी कमाई कर सकते हैं खराब जल निकासी: जल जमाव वाली मिट्टी या अपर्याप्त जल निकासी प्रणालियाँ कवक के विकास के लिए आदर्श वातावरण बनाती हैं। जड़ों और लताओं के आसपास अतिरिक्त नमी सड़ांध के विकास को बढ़ावा देती है। दूषित मिट्टी और रोपण सामग्री: दूषित मिट्टी या संक्रमित रोपण सामग्री का उपयोग करने से फसल में रोगज़नक़ आ सकते हैं। उचित मिट्टी का बंध्याकरण और रोग-मुक्त पौध का उपयोग आवश्यक निवारक उपाय हैं।

परवल पर सड़न का प्रभाव

उपज में कमी: जड़ और बेल के सड़ने से फसल की पैदावार में काफी कमी आ सकती है। संक्रमित पौधे छोटे, विकृत फल पैदा कर सकते हैं, या गंभीर मामलों में, कटाई योग्य उपज देने में विफल हो सकते हैं। आर्थिक नुकसान: किसानों के लिए, कम पैदावार का मतलब कम आय है। बीज, उर्वरक और श्रम जैसे इनपुट की लागत की भरपाई नहीं की जाती है, जिससे वित्तीय नुकसान होता है। फसल की गुणवत्ता: फसल जीवित रहने पर भी परवल की गुणवत्ता से समझौता किया जा सकता है। सड़ी हुई लताएँ और जड़ें सब्जी के स्वाद और बनावट को प्रभावित करती हैं, जिससे यह विपणन योग्य नहीं रह पाता है।

परवल में जड़ एवं लत्तर सड़न रोग को कैसे करें प्रबंधित ?

परवल में जड़ और बेल सड़न के प्रभावी प्रबंधन में निवारक और उपचारात्मक उपायों का संयोजन शामिल है। इस समस्या के समाधान के लिए यहां कुछ उपाय निम्नवत हैं यथा.

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फसल चक्र और स्थल चयन

रोग चक्र को तोड़ने के लिए फसल चक्र प्रणाली लागू करें। लगातार सीज़न के लिए एक ही मिट्टी में परवल लगाने से बचें। जलभराव के जोखिम को कम करने के लिए अच्छी जल निकासी वाले, ऊंचे रोपण स्थल चुनें।

मिट्टी की तैयारी

रोपण से पहले, सुनिश्चित करें कि मिट्टी ठीक से तैयार है। मिट्टी की संरचना और जल निकासी में सुधार के लिए खाद जैसे कार्बनिक पदार्थ शामिल करें। मृदा सौरीकरण का प्रयोग करें, एक ऐसी तकनीक जहां प्लास्टिक शीट का उपयोग गर्मी को रोकने और रोपण से पहले मिट्टी से पैदा होने वाले रोगजनकों को मारने के लिए किया जाता है।

बीज का चयन एवं उपचार

प्रतिष्ठित स्रोतों से रोगमुक्त रोपण सामग्री का उपयोग करें। रोपाई से पहले फफूंद संक्रमण की संभावना को कम करने के लिए रोपण सामग्री को फफूंदनाशक से उपचारित करें।

उचित जल प्रबंधन

जड़ों और लताओं के आसपास अत्यधिक नमी से बचते हुए, फसल की सिंचाई सावधानी से करें। जड़ क्षेत्र में सीधे पानी पहुंचाने के लिए ड्रिप सिंचाई का उपयोग करें, जिससे फंगल संपर्क कम हो जाए।

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कवकनाशी का प्रयोग

निवारक उपाय के रूप में फफूंदनाशकों का प्रयोग करें, विशेष रूप से पौधे के विकास के प्रारंभिक चरण के दौरान। इसके नियंत्रण के लिए फलों को जमीन के सम्पर्क में नहीं आने देना चाहिए। इसके लिए जमीन पर पुआल या सरकंडा को बिछा देना चाहिए। फफुंदनाशक जिसमे रीडोमिल एवं मैंकोजेब मिला हो यथा रीडोमिल एम गोल्ड @ 2ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने एवं इसी घोल से परवल के आसपास की मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भीगा देने से रोग की उग्रता में कमी आती है। ध्यान देने योग्य बात यह है की दवा छिडकाव के 10 दिन के बाद ही परवल के फलों की तुड़ाई करनी चाहिए । दवा छिडकाव करने से पूर्व सभी तुड़ाई योग्य फलों को तोड़ लेना चाहिए । मौसम पूर्वानुमान के बाद ही दवा छिडकाव का कार्यक्रम निर्धारित करना चाहिए ,क्योकि यदि दवा छिडकाव के तुरंत बाद बरसात हो जाने पर आशातीत लाभ नही मिलता है। उचित कवकनाशी और प्रयोग कार्यक्रम पर मार्गदर्शन के लिए कृषि विशेषज्ञों से परामर्श लें।

जैविक नियंत्रण

ट्राइकोडर्मा की विभिन्न प्रजातियां जैसे लाभकारी सूक्ष्मजीवों के उपयोग करें जो रोगजनक कवक को दबाने में मदद करते हैं।

स्वच्छता

संक्रमित पौधों के मलबे को हटाकर और नष्ट करके खेत की अच्छी स्वच्छता अपनाएं। यह मिट्टी में रोगज़नक़ों के निर्माण को रोकता है। बीमारी को फैलने से रोकने के लिए औजारों और उपकरणों को कीटाणुरहित करें।

प्रतिरोधी किस्में

यदि उपलब्ध हो तो परवल की ऐसी किस्में चुनें जिनमें जड़ और बेल सड़न के प्रति प्रतिरोधक क्षमता हो। प्रतिरोधी किस्में संक्रमण के खतरे को काफी हद तक कम कर सकती हैं।

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पोषक तत्व प्रबंधन

मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलित स्तर बनाए रखें। पोषक तत्वों की कमी वाले पौधे रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरक का प्रयोग की नियमित निगरानी और समायोजन करें।

प्रशिक्षण और शिक्षा

किसानों को रोग की पहचान और प्रबंधन तकनीकों में प्रशिक्षित करें। समय पर सलाह और सहायता के लिए स्थानीय सहायता नेटवर्क और विस्तार सेवाएँ स्थापित करें।

मौसम की निगरानी

मौसम की स्थिति पर नज़र रखें, विशेषकर बरसात के मौसम में। जब परिस्थितियाँ फंगल वृद्धि के अनुकूल हों तो निवारक उपाय लागू करें। अंत में कहने का तात्पर्य है की परवल में जड़ और बेल का सड़ना किसानों के लिए एक चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन सही प्रबंधन रणनीतियों के साथ, इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। फसल चक्र, मिट्टी की तैयारी और उचित जल प्रबंधन जैसे निवारक उपाय महत्वपूर्ण हैं। इसके अतिरिक्त, रोग प्रतिरोधी किस्मों और जैविक नियंत्रण विधियों का उपयोग फसल के लचीलेपन को और बढ़ा सकता है। रोग प्रबंधन के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाकर और सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में सूचित रहकर, किसान अपनी परवल फसलों की रक्षा कर सकते हैं और अधिक सुरक्षित और लाभदायक फसल सुनिश्चित कर सकते हैं।